एपिसोड 8: प्रधानमंत्री का संसद में बयान, झोलाछाप डॉक्टर की करतूत, मालदीव संकट व अन्य


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Apr 10 2019 74 mins  
संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान, उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक झोलाछाप डॉक्टर द्वारा करीब 40 लोगों को एचआईवी से संक्रमित करने का मामला, भाजपा सांसद विनय कटियार द्वारा मुसलमानों के खिलाफ दिया गया बयान, राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आज़ाद का यह कहना कि राज्यसभा टीवी को भाजपा टीवी बनाने की कोशिश हो रही है और साथ में भारत के दक्षिण-पश्चिमी पड़ोसी मालदीव में फिर से पैदा हुआ राजनीतिक संकट इस बार की चर्चा के मुख्य विषय रहे.चर्चा में इस बार अतुल चौरसिया, आनंद वर्धन और अमित भारद्वाज के साथ एनडीटीवी के एडिटर न्यूज़ प्रियदर्शन बतौर मेहमान शामिल हुए.झोलाछाप डॉक्टर की करतूत को देश की लचर और जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था का नतीजा बताते हुए प्रियदर्शन ने कहा, “दरअसल इस समस्या की जड़ ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर मौजूद घनघोर गरीबी है. संसाधनों के अभाव में लोग इस तरह के झोलाछाप चिकित्सकों के पास इलाज कराने के लिए मजबूर हैं. देश के किसी भी जिले के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर देखा जा सकता है वहां, स्वच्छता की बजाय नरक का साम्राज्य दिखेगा. 20-30 साल पहले तक यही चिकित्सालय बेहतर तरीके से काम करते थे. दिनोंदिन इनकी दशा बदतर हुई है.”आनंद ने विनय कटियार के बयान पर कहा कि ये मौजूदा सरकार के फुट सोल्जर्स हैं, जिन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए. संभव है कि चर्चा में आने के लिए हताशा में भी वे इस तरह के बयान दे रहे हों.अमित भारद्वाज ने प्रधानमंत्री के लोकसभा और राज्यसभा में दिए गए भाषण में की गई कुछ दिलचस्प तथ्यात्मक गलतियों की ओर ध्यान दिलाया. मसलन बैंकों के एनपीए के आंकड़े को उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार की नाकामी से जोड़ा जो कि असल में एनपीए के आंकड़े न होकर कुल लोन की मात्रा थी.इस पर आनंद वर्धन का तर्क था कि अक्सर कुछ नेता सरकारी बाबुओं के ऊपर जरूरत से ज्यादा निर्भर होने के कारण ऐसी गलती करते हैं. इस मामले में भी लगता है कि जिस अधिकारी ने मोदीजी को आंकड़े उपलब्ध करवाए उसने जिम्मेदारी से अपना काम नहीं किया.न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया के मुताबिक वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर किया गया हमला उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं था. अतुल कहते हैं, “भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दो महान नेताओं को उनकी मौत की आधी सदी बाद इस तरह से आमने-सामने खड़ा करना एक प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता. आज से 50 साल बाद परिस्थितियों को समग्रता से रखे बेगैर कोई कहे कि मोदी ने आडवाणी का मौका छीन लिया, तो ठीक नहीं होगा. प्रधानमंत्री स्वस्थ नजीर स्थापित नहीं कर रहे हैं.”

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