एनएल चर्चा 75: राहुल गांधी का इस्तीफा, जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन और अन्य


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Jul 06 2019 66 mins  
बीता हफ़्ता बहुत सारी बहसें लेकर आया. राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया हैं और उन्होंने पांच पेज का एक लेख भी लिखा, जिसकी काफी चर्चा भी हो रही है. इसके अलावा, मुंबई के महाराष्ट्र में बारिश ने प्रकोप दिखाया है और बाढ़ की स्थिति बनी हुई है, जिसमें काफी लोगों की मौतें भी हुई हैं. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को 6 महीने के लिए एक बार फिर बढ़ा दिया गया है. दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में एक सांप्रदायिक वारदात दिखने को मिली, जिसमें एक मंदिर में भी तोड़फोड़ हुई. इसके अलावा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुरादाबाद दौरे के वक़्त वहां पर पत्रकारों को एक कमरे में करीब 35 मिनट तक बंद कर दिया गया ताकि वो सवाल न कर सकें मुख्यमंत्री से. कश्मीर की आदाकारा ज़ायरा वसीम, जिन्होंने दंगल फिल्म में अमीर खान के साथ अपना डेब्यू किया था बाल कलाकार के तौर पर, अब उन्होंने अपने एक्टिंग करियर को छोड़ने का फैसला किया है और उनका तर्क ये है कि उनका एक्टिंग करियर उनके ईश्वर से मिलने की राह में बड़ा रोड़ा बन रहा था.चर्चा में इस बार शामिल हुए लेखक और पत्रकार अनिल यादव. न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन ने भी शिरकत की. इसके अलावा युवा पत्रकार राहुल कोटियाल भी चर्चा में शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.अतुल ने बातचीत की शुरुआत करते हुए बताया कि "पिछले हफ़्ते न्यूज़लॉन्ड्री के लिए बड़ी ख़बर आयी, जिसमें न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी को और असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल को 'रेड इंक' अवार्ड मिला है. यह अवार्ड 2018 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में हुए एक फेक एनकाउंटर पर आधारित एक स्टोरी के लिए दिया गया. राहुल ने करीब एक हफ़्ते तक दंडकारण्य के जंगलों में दौरा करके, लोगों के बीच रह कर तथ्य जुटाये, तमाम लोगों से बातचीत की, जिसमें ये पता चला कि आम ग्रामीण उस एनकाउंटर में मारे गये थे."प्रतिक्रिया में राहुल ने पुरस्कृत स्टोरी की पृष्ठभूमि के बारे में बताया कि "ये स्टोरी वहीं शुरु हुई जब 15 लोगों की मौत दंडकारण्य के जंगलों में हुई थी और राज्य प्रबंधन के हवाले से कहा गया कि यह एक बहुत बड़ी सफलता है. ऑपरेशन मानसून वहां पर चलाया जा रहा था और उसमें ये कार्रवाई की गयी, जिसमें 15 नक्सलियों को मार गिराया गया. लेकिन कुछ सबूत हमें मिले जिसमें सामने आया कि इस एनकाउंटर में नक्सली नहीं, बल्कि आम ग्रामीण मारे गये थे. उसमें 12-13 साल के छोटे बच्चे भी शमिल थे. जब हम लोग गांव में पहुंचे पाया कि दंडकारण्य बहुत विस्तृत और दुर्गम है. स्टोरी के लिए कम से कम हम 24 घंटे और 55 किलोमीटर तक पैदल चले थे. बरसात के दौर में तो गाड़ियों और पुलिस टीम के लिए भी काफी मुश्किल होता उतने अंदर तक पहुंच पाना. वह इलाके ऐसे हैं कि वहां पर खेती शहरों जैसी नहीं होती है. जंगल के बीच में ही खेत होते हैं और वो खेत कम से कम गांव से 5 या 10 किलोमीटर भी दूर होते हैं. तो गांव के लोग पास ही एक लाडी बना लिया करते हैं; एक झोपड़ी जैसी चीज़ होती हैं जिसे लाडी कहां जाता हैं. अक्सर जब वह खेती के लिए इतनी दूर जाया करते हैं, तो वहीं रुक जाया करते हैं. वे साथ में खाना ले जाते हैं और एक-दो दिन वहीं रुक जाते हैं और फिर वापस अपने घरों को लौटते हैं. घटना के दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ कि गांव के लोग लाडी में मौजूद थे, जिनको सुरक्षा बलों ने नक्सली समझ लिया, उसके बाद एनकाउंटर हुआ और ये बोल दिया गया कि 15 नक्सली मारे गये. ये स्टोरी जो हमने की वो इसलिए कि पुलिस ने नक्सलियों को नहीं मारा, बल्कि मरने वालों को नक्सली साबित करने का काम किया. उनमें कई लोग ऐसे थे जो चश्मदीद थे, जिन्हें सेना बलों द्वारा की गयी गोलीबारी में गोलियां लगीं, वो गोलियां उनके शरीर में मौजूद थी, लेकिन बाद में वह अस्पताल नहीं जा सकते थे. क्योंकि पुलिस का ये कहना था कि वहां जितने लोग मौजूद थे वह नक्सली थे और हमने सिर्फ नक्सलियों को मारा है तो इस डर से वो वहां भी नहीं जा सकते थे. लेकिन हमने उनकी पहचान के साथ ये स्टोरी की थी कि ये लोग वहां मौजूद थे और कोई नक्सली नहीं बल्कि आम ग्रामीण लोग थे."इस मसले के साथ-साथ बाक़ी विषयों पर भी चर्चा के दौरान विस्तार से बातचीत हुई. बाकी विषयों पर पैनल की राय जानने-सुनने के लिए पूरी चर्चा सुनें.

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