एनएल चर्चा 77: कुलभूषण जाधव पर फैसला, एनआईए बिल, असम में कवियों पर एफआईआर और अन्य


Episode Artwork
1.0x
0% played 00:00 00:00
Jul 20 2019 53 mins  
पिछले हफ़्ते में देश से लेकर विदेश तक कई ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं जो अपने-अपने स्तर पर महत्वपूर्ण होने के कारण चर्चा का विषय रहीं. बीते दिनों पाकिस्तानी जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जादव पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने फैसला सुनाया है. बीते लोकसभा चुनाव से पहले शुरू हुए 'तिरंगा टीवी' के बंद हो जाने के कारण वहां के कर्मचारियों पर बेरोज़गारी का संकट गहरा गया है. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भाषण चोरी करने के झूठे आरोप को लेकर ज़ी टीवी के एडिटर इन चीफ़ सुधीर चौधरी पर मानहानि का मुकदमा दायर किया है. हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा द्वारा एनआईए बिल पारित किया गया. एक मामले के संबंध में अपना फैसला सुनाते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि अब कोर्ट में आने वाले व्यक्ति को जज के नाम के आगे 'मे लॉर्ड' जैसे शब्दों का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होगी. इसके अलावा, एक अन्य ख़बर असम से आयी जहां स्थानीय भाषा के 10 कवियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गयी है.उपरोक्त सभी मसलों पर न्यूज़लॉन्ड्री के खास पॉडकास्ट प्रोग्राम 'एनएल चर्चा' में 3 खास मेहमानों के साथ चर्चा की गयी. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया. कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और लेखक व वरिष्ठ पत्रकार अनिल यादव बतौर पैनलिस्ट मौजूद रहे.चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल ने कहा कि "अंतरराष्ट्रीय कोर्ट द्वारा कुलभूषण जादव की फांसी पर रोक लगा दी गयी है. कोर्ट द्वारा उन्हें काउंसलर मुहैया कराने का आदेश दिया गया है. दूसरी ओर पाकिस्तान द्वारा कहा जा रहा है कि चूंकि कोर्ट ने उन्हें उनके नियमों के अनुसार कार्रवाई करने को कहा है, इसलिए भारत की अपेक्षा अनुसार वह उनकी रिहाई करने को बाध्य नहीं है. तो ऐसे में देखा जाये तो क्या ये दोनों में से किसी पक्ष की जीत है, या फिर न्याय के तहत देखा जाये तो कुलभूषण जादव का जो फांसी का फैसला था वह टल गया है और यह एक राहत की बात है?"इस विषय पर बात को आगे बढ़ाते हुए आनंद वर्धन ने कहा कि "इसमें बहुत सारी आशंकाएं हैं. दो साल पहले जब पाकिस्तान की कोर्ट में मुकदमा शुरू हुआ तो एक आशंका थी कि सच में यही कुलभूषण जादव हैं या नहीं. यह आशंका अभी भी बनी हुई है. दूसरी बात है कि जो 1961 का वियना कंवेंशन है उसके कई अनुच्छेदों का यहां साफ तौर पर उल्लंघन है. उसमें यह कहा गया कि जो गिरफ्तारी की गयी, उनके काउंसलेट को तुरंत सूचित किया जायेगा, जबकि इन्होंने 21 दिन लगाये. दूसरी बात है कि जिन देशों से कूटनीतिक संबंध हैं उनके दूतावास को तुरंत सूचित किया जाना चाहिए, जो इन्होंने नहीं किया. तो यह ख़ारिज नहीं हुआ है कि वह जासूस हैं, लेकिन जासूसों के अदालती कार्रवाइयों में भी इस कन्वेंशन के नियम प्रभावी होंगे. मेरा मानना है कि 2017 में भारत और पाकिस्तान के जो कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण हुए थे, वह न हुए होते तो इसका रास्ता कूटनीति से ही निकल जाता."विषय के संबंध में अपना पक्ष रखते हुए अनिल यादव ने कहा कि "मुझे लगता है कि इस संबंध में जो फैसला आया है वह चीन और अमेरिका के पाकिस्तान के प्रति बदले रवैये से प्रभावित है. आप देखेंगे कि इस बार चीन ने भी मसूद अज़हर के मामले में उसे आतंकवादी घोषित करने के पक्ष में वोट किया था. यह दवाब का ही नतीजा है कि इमरान खान को यह कहना पड़ा है कि वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ हैं और प्रो-पीपल गवर्नमेंट चलाना चाहते हैं. मुझे इस फैसले की बड़ी बात यह लगती है कि एक तो कुलभूषण की जान बच जायेगी और दूसरा चूंकि उन्हें काउंसलेट से मिलने दिया जायेगा, इसलिए न्यायिक प्रक्रिया ठीक से चल सकेगी. साथ ही जहां तक आतंकवाद का मसला है, तो यह तनाव तो चलता ही रहेगा इसके सुलझने के आसार दिखते नहीं है."इसके अतिरिक्त अन्य सभी मसलों पर भी अतुल चौरसिया के संचालन में पैनलिस्टों के साथ न्यूज़लॉन्ड्री के खास पॉडकास्ट 'एनएल चर्चा' में विस्तार से बातचीत की गयी. साथ ही कार्यक्रम के अंत में अनिल यादव द्वारा डॉक्टर संजय चतुर्वेदी की कविता 'वह साधारण सिपाही जो कानून और व्यवस्था के काम आये' का पाठ किया गया. पूरी चर्चा सुनने के लिए 'एनएल चर्चा' का पूरा पॉडकास्ट सुनें.

Hosted on Acast. See acast.com/privacy for more information.