एनएल चर्चा 56: ममता-सीबीआई विवाद, मार्कंडेय काटजू और अन्य


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Feb 08 2019 57 mins  
इस हफ्ते चर्चा का मुख्य विषय रहा पश्चिम बंगाल में सीबीआई का अनपेक्षित छापा, नतीजे में सीबीआई टीम की गिरफ्तारी और साथ में ममता बनर्जी का सत्याग्रह. ममता बनर्जी ने अपने पुलिस प्रमुख राजीव कुमार से पूछताछ करने पहुंची सीबीआई टीम को पूरे हिंदुस्तान में सुर्खी बना दिया. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से संबंधित एक लेख लिखा जिसे किसी भी भारतीय मीडिया ने प्रकाशित नहीं किया. इस लेख में मुख्य न्यायाधीश से 4 सवाल पूछे गए थे. इसको लेकर मार्कंडेय काटजू ने भारतीय मीडिया के चरित्र, कार्यशैली पर काफी तीखा प्रहार किया. साथ ही राहुल गांधी का नितिन गडकरी के बयान को समर्थन और ट्विटर पर हुई बहस और अन्ना हज़ारे का रालेगण सिद्धि में अनशन आदि विषय इस बार की एनएल चर्चा के केंद्र में रहे.चर्चा में इस बार वरिष्ठ पत्रकार अनुरंजन झा पहली बार मेहमान के रूप में हमारे साथ जुड़े. झा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. साथ ही पत्रकार और लेखक अनिल यादव और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकर आनंद वर्धन भी चर्चा में शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.सीबीआई और ममता बनर्जी के जुड़े टकराव पर बातचीत करते हुए अतुल ने आनंद से कहा, “सीबीआई ने कोलकाता के पुलिस प्रमुख राजीव कुमार के यहां छापा मारा. जवाब में बंगाल की पुलिस ने सीबीआई अधिकारियों को ही गिरफ्तार कर लिया. भाजपा कह रही है ये एक संवैधानिक संकट है, तृणमूल वाले कह रहे है ये लोकतंत्र की हत्या है. विरोध में ममता बनर्जी सत्याग्रह पर बैठ गईं. यहां तक तो सब ठीक था लेकिन साथ में अजीब बात यह रही कि राजीव कुमार भी सत्याग्रह पर बैठ गए. एक पुलिस अधिकारी का इस तरह से सत्याग्रह पर बैठ जाना क्या बताता है?”आनंद ने इस स्थिति को पुलिस के राजनीतिकरण से जोड़ते हुए कहा, “जितनी भी अखिल भारतीय सेवाएं हैं, आईएएस, आईपीएस आदि, यह सभी अचार संहिता नियम 1968 से जुड़ी हैं. पहले राजनैतिक वर्ग और अधिकारी तंत्र दोनों का एक हद तक तालमेल था क्योंकि एकमात्र शक्तिशाली पार्टी कांग्रेस थी. अब राज्यों के स्तर पर राजनीति का स्थानीयकरण हुआ है, इसके फलस्वरूप अधिकारियों का भी बंटवारा हुआ है. अधिकारी जातीय खेमों में भी बंटे हुए हैं. सबसे ज़्यादा राजनीतिकरण पुलिस का इसलिए दिखता है क्योंकी रोज़मर्रा के जीवन में लोगों का राज्य के अंग के तौर पर सबसे ज्यादा सामना पुलिस से ही होता है. राजीव कुमार का अनशन पर बैठना तो सही नहीं है पर यह अभूतपूर्व भी नहीं है.”चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अतुल कहते हैं, “एक बात और है. एक हफ्ते पहले ममता बनर्जी ने कोलकाता में जिस तरह से समूचे विपक्ष की गोलबंदी की थी, उसने भी कहीं न कहीं हलचल पैदा कर दी थी केन्द्र सरकार के भीतर. यह भी एक वजह है ममता और मोदी के टकराव की.”अनुरंजन जा यहां पर हस्तक्षेप करते हुए कहते हैं, “केन्द्र की सरकार जिस तरीके से अभी चल रही है, चुनाव बिलकुल सिर पर है और सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता कहते हैं की वो स्लॉग ओवर के छक्के लगा रहे हैं. तो उनके हिसाब से तो यह सब छक्का है, अब वो नो बॉल पर मार रहे है या वो बॉउंड्री पर कैच हो रहे हैं, ये किसी को नहीं पता है. ये सब बाद में पता चलेगा. लेकिन हो ये रहा है की जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी की सरकार पिछले दो-तीन महीने में एक्टिव हुई है, खासकर विपक्षी पार्टियों को लेकर, वह काम उसे 4 साल पहले करना चाहिए था. आप 5 साल सत्ता में रहे. जिन आधार पर आप सत्ता में आए उनको लेकर आपने 5 सालों में कुछ किया नहीं. और फिर आप अचानक आ कर कहने लगे कि भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे है और भ्रष्टाचार पर कार्रवाई कर रहे है तो आपको पता होना चाहिए कि उसके भी कुछ नियम और कानून तय हैं. यह सही बात है कि ममता जिस तरह से विपक्ष की गोलबंदी कर रही हैं उसपे सबकी नज़र है. सबको पता है अगर विपक्ष एकजुट हो गया तो बहुत बड़ा नुकसान हो जायगा.”नितिन गडकरी का बयान और अन्ना हज़ारे पर भी पैनल के बीच चर्चा हुई. आनंद वर्धन और अनुरंजन झा ने इस चर्चा में अपने दिलचस्प अनुभव साझा किए. अन्य विषयों पर पैनल की विस्तृत राय जानने के लिए पूरी चर्चा सुने.

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