जागरूक रहकर दूसरों के प्रभाव में आने से बच सकते हैं चाहे आनंद हो या गुस्सा, हम ऐसे हैं कि दूसरों की भावनाओं से प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं पाते। इसे इमोशनल कंटेजियन यानी भावनात्मक संक्रमण कह सकते हैं। पर अगर थोड़ी-सी जागरूकता रखी जाए तो दूसरों के नकारात्मक विचारों से खुद को बचाकर रख सकते हैं। अमेरिकी पत्रकार एरियल लीव ने अपने जीवन की घटनाओं पर एक किताब लिखी है। उसमें वह बताती हैं कि 1970 के दशक में वह मैनहट्टन में एक अपार्टमेंट में अपनी चिड़चिड़ी मां के साथ रहती थीं। वहां लोग पार्टी करते और वह उन पर चिल्लाती रहतीं। उनका मूड बहुत जल्दी-जल्दी बदलता और वह हमेशा सतर्क रहतीं। ऐसे में वह रिलैक्स ही नहीं कर पाती लीव लिखती हैं कि इसका परिणाम ये हुआ कि वयस्क होने के बाद वह दूसरों की मनोदशा और उनकी ऊर्जा से बहुत ज्यादा प्रभावित होने लगी। इसका मुख्य कारण लीव की उतार- चढ़ाव भरी परवरिश रही। लेखिका इलेन हैटफील्ड इमोशनल कंटेजियन को दूसरों के हावभाव, आवाज, हरकते आदि को देखकर अपना व्यवहार बदल देने के रूप में परिभाषित करती हैं। कई अध्ययन बताते हैं कि तीव्र नकारात्मक भावनाएं अधिक सशक्त रूप से अभिव्यक्त होती है, वे अधिक संक्रामक होती हैं। बार-बार नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के कारण हम इसकी वजह नहीं देख पाते। इसके बजाय सोचते हैं कि हम बुरे हालातों में हैं। इससे बचने के लिए क्या करें ? सबसे पहले अपने दूसरों के बुरे मूड के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील न हों। पर्याप्त नींद लें, अच्छा खाएं, व्यायाम करें और जीवन में उद्देश्य लाएं। आपको अपना मूड खराब करने का पूरा अधिकार है, लेकिन दूसरों का मूड बिगाड़ने का नहीं, उनके बारे में भी सोचें और किसी से बात करते समय अपना मूड सामान्य बनाए रखें। अपने जीवनसाथी से अपने बारे में फीडमैक लेते रहे।