Mar 15 2025 2 mins
नज़र झुक गई और क्या चाहिए | फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़र झुक गई और क्या चाहिए
अब ऐ ज़िंदगी और क्या चाहिए
निगाह -ए -करम की तवज्जो तो है
वो कम कम सही और क्या चाहिए
दिलों को कई बार छू तो गई
मेरी शायरी और क्या चाहिए
जो मिल जाए दुनिया -ए -बेगाना में
तेरी दोस्ती और क्या चाहिए
मिली मौत से ज़िंदगी फिर भी तो
न की ख़ुदकुशी और क्या चाहिए
जहाँ सौ मसाइब थे ऐ ज़िंदगी
मोहब्बत भी की और क्या चाहिए
गुमाँ जिसपे है ज़िंदगी का 'फ़िराक़'
वही मौत भी और क्या चाहिए