Mar 21 2025 1 mins
उतरा ज्वार | दूधनाथ सिंह
उतरा ज्वार
जल
मैला
लहरें
गयीं क्षितिज के पार
काला सागर
अन्धी आँखें फाड़
ताक रहा है
गहन नीलिमा
बुझे हुए तारे
कचपच-कचपच
ढूँढ़ रहे हैं
ठौर
मैं हूँ मैं हूँ
यह दृश् ।
खोज रहा हूँ
बंकिम चाँद
क्षितिज किनारे
मन में
जो अदृश्य है ।