Abhaya | Ashwini


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Mar 20 2025 1 mins  

अभया | अश्विनी


पुरवा सुहानी नहीं, डरावनी है इस बार,

चपला सी दिल दहलाती आती चीत्कार।


वर्षा नहीं, रक्त बरसा है इस बार,

पक्षी उड़ गए पेड़ों से, रिक्त है हर डार।


किसे सुनाती हो दुख अपना, सभी बहरे हैं,

नहीं समझेगा कोई, घाव तुम्हारे कितने गहरे हैं।


पहने मुखौटे घूमते, घिनौने वही सब चेहरे हैं,

अपराधी सत्ता के गलियारों में ही तो ठहरे हैं।


रक्षक बने भक्षक, छाई चारों ओर निराशा,

धन के हाथों बिके हैं सब, किससे करतीं आशा।


याचना नहीं अब रण के लिए तत्पर हो जाओ,

महिषासुर मर्दिनी बन, अपना रौद्र रूप दिखलाओ।